वर्ष C (I) - पास्का काल का सातवाँ सप्ताह: गुरुवार

(प्रेरित चरित 22:30; 23:6-11, योहन 17:20-26)

Bro. Kishore Babu

प्रभु येसु ख्रीस्त में प्यारे भाइयों और बहनों,

पहले पाठ में हम देखते हैं कि प्रेरित पौलुस को यहूदियों के महासभा के सामने लाया गया। वे जानते थे कि सभा फरीसियों और सदूकियों में बँटी हुई है, इसलिए उन्होंने चतुराई से कहा कि उन्हें इसलिए न्यायालय में खड़ा किया गया है क्योंकि वे मृतकों के पुनरुत्थान में विश्वास रखते हैं। यह सुनकर फरीसियों और सदूकियों के बीच विवाद उत्पन्न हो गया, क्योंकि फरीसी पुनरुत्थान में विश्वास रखते थे, लेकिन सदूकी इसे नहीं मानते थे।

इस घटना से हमें दो बातें सीखनी चाहिए:

  1. सच्चाई का साहस: पौलुस जानते थे कि सत्य का प्रचार करने से उन्हें कठिनाइयों का सामना करना पड़ेगा, फिर भी उन्होंने निडर होकर सुसमाचार का प्रचार किया। हमें भी अपने विश्वास में दृढ़ रहना चाहिए, चाहे हमें संघर्षों का सामना ही क्यों न करना पड़े।
  2. ईश्वर की योजना: प्रभु ने पौलुस से कहा, “साहस रखो! जिस प्रकार तुमने येरुसालेम में मेरा साक्ष्य दिया, वैसे ही तुम्हें रोम में भी देना होगा” (प्रेरित चरित 23:11)। इसका अर्थ है कि जब हम ईश्वर के कार्य में लग जाते हैं, तो वे हमें छोड़ते नहीं, बल्कि हमें आगे बढ़ने की शक्ति देते हैं।

सुसमाचार में येसु अपने शिष्यों के लिए प्रार्थना करते हैं, न केवल उनके लिए जो उस समय उनके साथ थे, बल्कि उन सभी के लिए जो उनके वचनों पर विश्वास करेंगे। वे प्रार्थना करते हैं कि उनके सभी अनुयायी एक हों, जैसे वे और पिता एक हैं।

आज की दुनिया में हम देखते हैं कि कितने ही लोग विभाजन, ईर्ष्या और संघर्षों में उलझे हुए हैं। येसु हमें सिखाते हैं कि सच्ची कलीसिया वह है जो प्रेम और एकता में जीती है। हमें मतभेदों को छोड़कर प्रभु के प्रेम में एकजुट रहना चाहिए, ताकि संसार हमारे द्वारा ईश्वर की महिमा देख सके।

आज के पाठ हमें तीन महत्वपूर्ण शिक्षाएँ देते हैं:

  1. सत्य के लिए साहस रखें, भले ही हमें कठिनाइयों का सामना करना पड़े।
  2. ख्रीस्त के प्रेम में एकजुट रहें, जैसे एक परिवार।
  3. ईश्वर की उपस्थिति पर भरोसा करें, क्योंकि वे हमें कभी अकेला नहीं छोड़ते।

आइए, हम सत्य और विश्वास में अडिग रहें, एकता को बढ़ावा दें और ईश्वर की उपस्थिति पर भरोसा रखें। जब हम इन तीन बातों को अपने जीवन में अपनाएँगे, तब हम सच्चे ख्रीस्तीय बन सकेंगे। आमेन।


Year C (I) - Seventh Week of Easter: Thursday

(Acts 22:30; 23:6-11, John 17:20-26)

Beloved Brothers and sisters in Jesus Christ,

In today’s first reading, Paul stands before the Sanhedrin and boldly declares his belief in the resurrection. This causes division between the Pharisees and Sadducees, but Paul remains firm in his testimony. That night, the Lord appears to him, saying, “Take courage! As you have testified about me in Jerusalem, so you must also testify in Rome.” This reminds us that God never abandons those who stand for His truth.

In the Gospel, Jesus prays for all who will believe in Him. His deepest desire is for unity among His followers, “that they may be one, just as you, Father, are in me and I in you.” In a world full of divisions, Jesus calls us to be witnesses of love and harmony. True disciples are known not by words alone but by the love they show to one another.

Today’s readings teach us three important lessons:

  1. Have courage to stand for truth, even when facing challenges.
  2. Strive for unity, living as one family in Christ’s love.
  3. Trust in God’s presence because He never leaves us alone.

Let us stand firm in truth and faith, promote unity, and trust in God’s presence. By embracing these lessons, we can become true Christians. Amen.

Bro. Kishore Babu