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चक्र- स – सामान्य कल का चौदहवां रविवार

इसा. 66:10- 14 गला. 6:14 -18 लुकस 10: 11- 12, 17- 20

ब्रदर स्तानिसलास लकडा (अम्बिकापूर धर्मप्रांत)


ख्रीस्त में आदरणीय प्रिय माता-पीताओं भाइयों एवं बहनों, जब हम कहीं जाते हैं जैसे किसी दर्शनीय स्थलों एवं किसी अपने खास लोगों से मिलने जाते हैं तो हम प्रयाह उसे हमारी आने की बात को हमारे वहां जाने से पूर्व भी सूचित करते हैं या किसी अन्य व्यक्ति के माध्यम से हमारी बातों को उसे व्यक्ति तक पहुंचाते हैं और हमारे आने की तैयारी करने की बात को रखते हैं। इस प्रकार की प्रक्रिया कुछ सालांे पहले हुआ करती थी परंतु आज की इस युग में फोन के माध्यम से हो जाती है।

प्रिय भाइयों एवं बहनों आज हम कुछ इसी प्रकार की बातों को संत लूकस के सुसमाचार 10ः 1-12, 16 20 से कुछ बिंदुओं पर मनन चिंतन करेंगे। पहला- मिशन के लिए आह्वान, दूसरा- लचीलापन अपनाना ।आईय हम पहले बिंदु पर अपना ध्यान केंद्रित करें- मिशन कार्य के लिए आह्वान, प्रिय भाइयों एवं बहनों वचन में हम पढ़ते हैं कि प्रभु यीशु अपने लिए मार्ग तैयार करने के लिए 72 शिष्यों को भेजता है इससे यह प्रतीत होता है कि ईश्वर के कार्य में उनके अनुयायियों के सक्रिय भागीदारी की आवश्यकता होती ह।ै जिस तरह बहतर को हर शहर और हर जगह भेजा गया था। प्रिय भाइयों बहनों मिशन कार्य केवल ईश्वर की राज्य की घोषणा करने की बारे में नहीं था बल्कि लोगों के दिलों को यीशु के आगमन के लिए तैयार करने के बारे में भी था। यह प्रत्येक विश्वासी को ईश्वर के कार्य में सक्रिय रूप से शामिल होने का आह्वान है। प्रिय भाइयों एवं बहनों चर्च का धर्म शिक्षा सीसीसी 849 में हमें बताता है कि हम प्रत्येक ख््राीस्तीयों को प्रभु के सुसमाचार का प्रचार करने के लिए बुलाए गए हैं।

दूसरा बिंदु है लचीलापन अपनाना - प्रभु यीशु हमें विभिन्न समस्याओं से एवं विपत्तियों से रूबरू कराते हैं। और इस परिस्थितियों में एक प्रभु के वचन के वाहक एवं प्रचारक को किस प्रकार व्यवहार करना है इस बात को समझने के लिए हमें लूकस 10ः 3-10, 11 में प्रभु यह कहते हैं की दुनिया में जाने से चुनौतियां और आस्वीकृति का सामना करना पड़ेगा। भेडियों के बीच में भेडों का उल्लेख करके इस बात पर जोर देते हैं कि विरोधियों के समय हमें मेमनो जैसा लचीलापन अपनाना है, और कहते है प्रतिकूलता और विरोधों का सामना करना मिशन का हिृस्सा है। इस मिशन कार्य में प्रतिरोध का सामना करना पड़ता है लेकिन हमें ईश्वर की योजना पर भरोसा रखना बहुत जारूरी है। और संत मति के सुसमाचार 16ः 33 में हमारा भरोसा मजबूत करते हुए प्रभु यीशु कहते हैं कि इस संसार में तुम्हें कष्ट होगा लेकिन हिृम्मत रखो मैं संसार को जीत लिया है प्रभु कहते हैं की प्रतिकूलता एवं विरोध क्रिश्चियन के लिए अनुभव का हिृस्सा है लेकिन जीत मसीह के माध्यम से सुनिश्चित है इससे हमें टूटना नहीं है बिखरना नहीं है परंतु समस्या का सामना करना है।

तीसरा बिंदु -हमारी खुशी का स्रोत सच्ची सफलताः- हम प्रत्येक जन इस बात पर सहमत होंगे। कि हमारी खुशी हमारी सच्ची सफलता से आती है चाहे हम किसी भी क्षेत्र में सफलता प्राप्त करते हैं, चाहे वह पढ़ाई, नौकरी या कोई अन्य कार्य में हम आनंदित एवं खुशी का अनुभव करते हैं। इसी भांती प्रभु के 72 शिष्य भी अपनी सफलताओं पर खुशी के साथ लौटते हैं परन्तु येसु ने उनका ध्यान चमत्कारों से हटकर ईश्वर के साथ उनके रिश्ते पर केंद्रित करते हैं और कहते हैं सच्ची खुशी और सफलता यह जानने से मिलती है कि हमारे नाम स्वर्ग में लिखे गए हैं ना कि केवल उपलब्धियां या जीत से। शिष्य अपनी उपलब्धियां पर खुश थे और यह स्वाभाविक भी है। हम भी शिष्यों के समान सांसारिक उपलब्धियां पर खुशी मनाते हैं परंतु प्रभु यीशु न केवल उनकी सफलताओं की बजाय उनकी आध्यात्मिक स्थिति पर ध्यान केंद्रित करने के लिए पुनः निर्देशित किया है।

प्रिय भाइयों ईश्वर के लिए सच्ची खुशी ईश्वर के साथ रिश्ता जोड़ना और स्वर्ग में हमारे नाम लिखा जाना ह।ै संत पौलुस अपने पत्र के माध्यम से फिलिपेयों को समझाते हुए कहते हैं प्रभु में आनंदित रहो का निर्देश देते हैं इस बात पर जोर देते हुए कि हमारी खुशी सांसारिक सफलता की बजाय ईश्वर के साथ हमारे रिश्ते में निहिृत होने चाहिृए। तो हम इन्हीं तीन बिंदुओं पर मनन चिंतन करते हुए अपने आप को प्रभु के कार्य के लिए पूर्ण रूप समर्पित करते हुए, सच्ची खुशी का स्रोत एवं नम्रता के लिए प्रभु से प्रार्थना एवं दुआ करें।