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चक्र- ब – वर्ष का पन्द्रहवां रविवार

अमोस 7:12-15 एफेस. 1:3-14 माकुस 6:7-13

ब्रदर स्तानिसलास लकडा (अम्बिकापूर धर्मप्रांत)


ख्रीस्तमें प्रिय माता-पिताओं एवं भाईयों एवं बहनों

हम संत माकुस के सुसमाचार 7:13 में पाते हैं जहां प्रभु येसु अपने संदेश को फैलाने के लिए 12 शिष्यों का चयन कर दो-दो की जोड़ी में उन्हे भेजते हैं, साथ ही साथ वह उन्हें अशुद्ध आत्माओं पर अधिकार और उन्हें ईश्वर के प्रावधान पर भरोसा करने का निर्देश देते हैं। हम वचन संख्या 7 में पढ़ते हैं उसने बहरहों को बुलाया और उन्हें दो-दो करके भेजना शुरू किया और उन्हें अशुद्ध आत्माओं पर अधिकार दिया। इस छोटे से वाक्यांश से हम तीन बिंदु अपने मनन चिंतन के लिए प्राप्त कर सकते हैं। पहला- सहयोग और सामूहिक कार्य, दूसरा- ईश्वर के प्रावधान पर भरोसा, तीसरा- सशक्तिकरण एवं अधिकार।

आए हम इन तीनों बिंदुओं पर मनन चिंतन करें, पहला- सहयोग एवं सामूहिक कार्यः- प्रिय भाइयों एवं बहनों पुराने जमाने में पूर्वज हमारे माता-पिता सहयोग एवं सामूहिक कार्य में विश्वास रखते थे, जैसे कोई व्यक्ति कृषि कार्य को करने के लिए अपने मित्र या अपने पड़ोसी के साथ मिलकर किया करते थे। आज हम इन वचनों में पाते हैं कि प्रभु येसु भी सहयोग और सहयोग समर्थ पर प्रकाश डालते हुई अपने शिष्यों को जोड़े में भेजते हैं। इसका मतलब है कि मिशन कार्य में शामिल व्यक्तियों को आपसी समर्थन प्रदान करन, े जिम्मेदारियां को साझा करने और प्रभावशीलता बढ़ाने के लिए भागीदारी की बहुत जरूरत है। साथ ही साथ कुछ लोग दो-दो परिवार का समूह बनाकर बारी-बारी से अपने समूह के लोगों के खेतों पर कार्य किया करते हैं और फलता या देखने को मिलता है कि उनके कार्यों का परिणाम बेहतर और अधिक फल होता है और प्रभु की शिष्या भी अपने मिशन कार्य में इसी प्रकार अच्छी सफलता पायी।

दूसरा बिंदु- ईश्वर के प्रावधान पर भरोसाः- प्रिया भाइयों एवं बहनों प्रभु यीशु अपने शिष्यों को हल्का सामान के साथ यात्रा करने और दूसरों के आतिथ्य पर भरोसा करने का निर्देश देते हैं इसका सीधा यही मतलब है कि हमें हमेशा ईश्वर के प्रावधान पर भरोसा करने की जरूरत है। इस सिद्धांत को नए तरीके से शुरू करने या अनिश्चििताओं का सामना करते समय या किसी कार्य को शुरू करने से पूर्व ईश्वर के मार्गदर्शन लेने की जरूरत है। साथ ही साथ हमें हमेशा प्रभु पर भरोसा करने की जरूरत है जिस प्रकार शिष्य गण प्रभु के वचनों एवं मार्गदर्शनों के निर्देशों का पालन करते हुये अपने मिशन कार्य में आगे बढ़ते हैं और प्रभु पर पूर्ण भरोसा करते हुये अपना मिशन कार्य करती है।

तीसरा बिंदु- सशक्तिकरण और अधिकार द्वारा अपने शिष्यों को अशुद्ध आत्माओं पर अधिकार देने के संदर्भ में सशक्तिकरण और अधिकार का यह बिंदु रोजमर्रा के जीवन में, यह सशक्तिकरण विश्वस्यिों को विभिन्न परिस्थितियों में आत्मविश्वास के साथ कार्य करने के लिए प्रोत्साहिृत करते है। प्रिय भाइयों एवं बहनों मानव सशक्तिकरण एवं अधिकार का उपयोग किस समय और किस प्रकार करना है इस बात को समझने के लिए प्रभु यीशु हमारे समक्ष संत मत्ती 18ः15-17 से एक उदाहरण हमारे समक्ष रखते हैं जहां प्रभु येसु विश्वासियों के बीच संघर्सों को हल करने के बारे में सीखते हैं। वह कहते हैं यदि आपका भाई कोई अपराध करता है तो उसे अकेले में समझाओ यदि वह आपकी बात नहीं मानता है तो और दो लोगों को बुलाओ..... इत्यादि। इन कथाओं से प्रभु यीशु हमें अपने सशक्तिकरण और अधिकार का प्रयोग अर्थात अपने बिवेकी की से समस्याओं का समाधान करने के बाद कहते हैं। साथ ही साथ प्राप्त अधिकार का गलत प्रयोग न करने की बात कहते हैं।