
एजेकिएल 2: 2-5a 2 कुरिंथियों 12: 7-9 मारकुस 6:1-6
ख्रीस्त में प्रिय भाईयों और बहनों
हम हमारे दैनिक जीवन काल में विभिन्न प्रकार की अस्वीकृतियों का अनुभव करते हैं। यह हमारे परिवार के सदस्यों एवं संबंधियों द्वारा या फिर अन्य लोगों के द्वारा हमने अनुभव किया होगा। आज के पवित्र सुसमाचार में हमने सुना कि नाज़रेंत के अपने ही गाँव के लोगों ने प्रभु येसु को अभिषिक्त के रूप में स्वीकार करने से मना कर दिया। हम पवित्र धर्मग्रंथ में पढ़ते हैं कि पिता ईश्वर ने हम लोगों के बीच में मुक्ति संदेश सुनाने के लिए कई नबियों को भेजा। परंतु हम लोगों ने न केवल उनके संदेशों की उपेक्षा की बल्कि उनको ईश्वर द्वारा भेजे हुए नबी मानने से भी इंनकार किया। जैसे कि हम नबी यिरमियांह के ग्रंथ में पढ़ते हैं, जब नबी यिरमियाह ने लोगों को समझाया कि वे अपने पापों के लिए पश्चाताप करें, तभी उनका सुधार होगा। बाबुल में निर्वासित यहूदियों को चेतावनी दी गई है कि वे वहाँ की देवमूर्तियों के प्रति आकर्षित न हो। इस पर नबी यिरमियाह को देशद्रोही और पराजयवादी कहकर दण्ड दिया गया। उसे बंदिग्रह में डाल दिया गया। वहाँ के लोगों ने नबी को ईश्वर द्वारा भेजे हुए नबी मानने से अस्वीकार कर दिया। (11:19) उसी प्रकार आज का पहला पाठ ईश्वर द्वारा नबी नियुक्त होने के समय नबी एजेकिएल को प्राप्त दिव्य दर्शन का वर्णन करता है। इस्राएल प्रजा अपने पापों और कुकर्मों से अपना जीवन व्यतीत कर रहे थे। नबी एजेकिएल ईश्वर की ओर से उन लोगों को अपने पापमय जीवन छोड़कर पश्चाताप करके एक अच्छा जीवन व्यतीत करने के लिए बाध्य करते हैं।
आज के पवित्र सुसमाचार में भी हम सुनते हैं कि येसु अपने सार्वजनिक जीवन के समय अपने घर और नगर नाजरेत आये जहाँ उन्होंने बचपन से लेकर 30 वर्ष की आयु तक अपना जीवन बिताया था। वहाँ के लोगों ने प्रभु येसु के चमत्कारों के विषय में सुना था। परंतु जब प्रभु येसु उनके बीच आये तो वहाँ के लोगों ने उनका कोई सेवा सत्कार और स्वागत नहीं किया, बल्कि उनका तिरस्कार किया गया, क्योंकि प्रभु यीशु उनकी नजरों में एक मामूली बढ़ई का बेटा था। वे येसु को पिता द्वारा भेजे गए परम पावन पुत्र स्वीकार करने में असमर्थ थे। उनकी स्वीकृति का परिणाम क्या था ? पवित्र वचन हमें बताता है कि प्रभु येसु वहाँ कोई चमत्कार नहीं कर सके। यह हमारे साथ भी हो सकता है। यदि हम देखें तो येसु हमारे बीच में पवित्र परम प्रसाद के रूप में, ईश्वर के वचनों के रूप में, गरीब लोगों के रूप में कई बार आते हैं। तो हमें उनका स्वागत करना चाहिए, न कि उनका तिरस्कार! संत लूकस के पवित्र सुसमाचार अध्याय 23: 33 में हम पढ़ते हैं कि येसु के साथ उन्होंने वहाँ और उन दो कुकर्मियों को भी क्रूस पर चढ़ाया - एक को उनके दाएं और एक को उनके बाएं। इन दोनों कुकर्मियों को उनके अपराधों के कारण दंड दिया गया था। उनमें से एक डाकू येसु की निंदा करता है “तू मसीह है न, तो अपने को और हमें भी बचा” (लूकस 23: 39)। लेकिन दूसरा डाकू उसे डांटते हुए कहता है, “क्या तुझे ईश्वर का भी डर नहीं”? (लूकस 23: 40) क्योंकि वह ईश्वर पर श्रध्दा रखता था और पश्चाताप करते हुए उसने प्रभु से कहा “येसु जब आप अपने राज्य में आएंगे, तो मुझे याद कीजिएगा।’’ तब येसु ने उससे कहा “मैं तुमसे कहता हूँ, तुम आज ही परलोक में मेरे साथ होंगे।’’ इन वचनों से हमें पता चलता है कि उस डाकू के जीवन में उस दिन बहुत ही आनंद का दिन हुआ होगा क्योंकि उसने प्रभु येसु पर विश्वास करते हुए अपनी गलती को माना और इसका परिणाम क्या था? येसु उसको अपने साथ परलोक ले जाते हैं। यदि हम भी प्रभु के शब्दों को ध्यानपूर्वक समझेंगे तो हमारे जीवन में भी प्रभु बहुत से चमत्कार करेंगे। न कि हमें नाजरेत के निवासियों की तरह अविस्वासी बनना है, परंतु एक सच्चे विश्वासी के रूप में प्रभु को स्वीकार करना है।