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चक्र- ब – सामान्य कल का तीसरा रविवार

1 योना 3:1-5, 10; 1 1कुरिन्थियो 7:29-31; मारकुस 1:14-20

- ब्रदर स्तानिसलास लकडा (अम्बिकापूर धर्मप्रांत)


ख्रीस्त में प्रिय माता-पिता, भाईयों और बहनों

आज हम संत मारकुस रचित सुसमाचार (मारकुस 1:14-20) पर मनन-चिंतन करेंगे। यह खंड प्रभु येसु के प्रथम मिशन कार्य का वर्णन करता है, जिससे हमें तीन महत्वपूर्ण संदेश प्राप्त होते हैं: 1) पश्चाताप और आत्मपरिवर्तन 2) ईश्वर के राज्य के मूल्यों को अपनाना 3) सुसमाचार में विश्वास और भरोसा

1. पश्चाताप और आत्मपरिवर्तन प्रभु येसु हमें पश्चाताप और परिवर्तन का आह्वान करते हैं। वे कहते हैं, "पश्चाताप करो और सुसमाचार पर विश्वास करो।" यह हमें अपने जीवन में आत्मनिरीक्षण करने और उन क्षेत्रों को पहचानने के लिए प्रेरित करता है जहाँ परिवर्तन की आवश्यकता है। हम मत्ती 6:33 में पढ़ते हैं: "तुम पहले उसके राज्य और उसकी धार्मिकता की खोज करो, तो ये सब चीजें तुम्हें मिल जाएँगी।" इसलिए, हमें ईश्वर के मार्ग पर चलने और अपने कार्यों तथा सोच को उसके अनुसार ढालने का प्रयास करना चाहिए।

2. ईश्वर के राज्य के मूल्यों को अपनाना ईश्वर का राज्य प्रेम, न्याय और दया का प्रतीक है। प्रभु येसु ने अपने जीवन के माध्यम से इन मूल्यों को साकार किया। उन्होंने कहा, "प्रभु का आत्मा मुझ पर है; उसने मेरा अभिषेक किया है ताकि मैं गरीबों को सुसमाचार सुनाऊँ, बंदियों को मुक्ति का संदेश दूँ, अंधों को दृष्टि प्रदान करूँ, और दलितों को स्वतंत्र करूँ" (लूकस 4:18-19)। यह हमें समाज में न्याय की स्थापना करने, क्षमा और करुणा को अपनाने, तथा अपने जीवन में ईश्वर के सिद्धांतों को दर्शाने के लिए प्रेरित करता है।

3. सुसमाचार में विश्वास और भरोसा सुसमाचार में विश्वास का अर्थ है प्रभु येसु के वचनों पर पूर्ण भरोसा रखना। कठिन परिस्थितियों में, जब हमें संदेह होता है या हम निराश होते हैं, तब यह विश्वास हमें शक्ति प्रदान करता है। पौलुस फिलिप्पियों के नाम पत्र में लिखते हैं, "मेरा ईश्वर अपनी महिमा के धन के अनुसार मसीह येसु द्वारा तुम्हारी प्रत्येक आवश्यकता को पूरी करेगा" (फिलिप्पियों 4:19)। यह हमें आश्वस्त करता है कि प्रभु हमें कभी अकेला नहीं छोड़ते।

3.प्रिय भाईयों और बहनों, हमें अपने जीवन में इन तीन महत्वपूर्ण संदेशों को आत्मसात करने का प्रयास करना चाहिए। पश्चाताप और आत्मपरिवर्तन के द्वारा हम ईश्वर के करीब जा सकते हैं, उनके राज्य के मूल्यों को अपनाकर प्रेम और दया का विस्तार कर सकते हैं, और सुसमाचार में विश्वास रखकर हर परिस्थिति में प्रभु पर भरोसा कर सकते हैं। ईश्वर हमें अपने अनुग्रह से भर दें और हमें उनके राज्य के सच्चे अनुयायी बनने की शक्ति प्रदान करें। आमेन!