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चक्र- अ – प्रभु के स्वर्गारोहण का महापर्व

प्रेरित-चरित 1:1-11; एफेसियों 1:17-23, 12-13; मत्ती 28:16-20

स्तानिसलास लकड़ा (अंबिकापुर धर्मप्रांत)


प्रिय माता-पिता, भाईयों और बहनों आज माता कलीसिया हर्ष और उल्लास के साथ प्रभु येसु के स्वर्गारोहण का पर्व मना रही है। संत लूकस और संत मत्ती के सुसमाचार में इस महिमामयी घटना का उल्लेख किया गया है, जहाँ प्रभु येसु अपने शिष्यों को अंतिम निर्देश देने के बाद स्वर्गारोहित हो गए। यह पर्व हमें तीन महत्वपूर्ण बातें सिखाता है: आशा की किरण, मिशन कार्य,विश्वास का संदेश

1. आशा की किरण: जब हम स्वर्गारोहण पर मनन-चिंतन करते हैं, तो हमें यह विश्वास मिलता है कि प्रभु येसु अपने कार्यों को पूरा करके पिता ईश्वर के पास लौट गए। यह हमें याद दिलाता है कि हम भी इस संसार में एक उद्देश्य के साथ आए हैं और इसे पूरा करके हमें भी पिता के पास लौटना है। लूकस 24:50-53 में प्रभु येसु अपने शिष्यों को आशीर्वाद देते हुए स्वर्गारोहित होते हैं, जिससे यह सिद्ध होता है कि मृत्यु अंत नहीं, बल्कि एक नए जीवन की शुरुआत है। प्रभु स्वयं यूहन्ना 14:3 में कहते हैं, "मैं तुम्हारे लिए स्थान तैयार करने जा रहा हूँ।" यह वचन हमें जीवन की कठिनाइयों का सामना करने का साहस देता है।

आज के सुसमाचार के पहले भाग में हम सुनते हैं कि जब शिष्यगण यहूदियों के भय से द्वार बंद किए एकत्र थे, प्रभु येसु उनके बीच आकर खड़े हो गए। उन्होंने अपने शिष्यों से कहा "तुम्हंं शांति मिले”। प्रभु येसु अपने शिष्यों को स्वर्गिक शांति प्रदान कर उन्हें उनके कार्यों को पूर्ण करने के लिए संसार भर में शांति देकर भेजते हैं। हम संत योहन रचित सुसमाचार 14:27 में सुनते हैं कि प्रभु येसु अपने शिष्यों से कहते हैं "मैं तुम्हारे लिए शांति छोड़ जाता हूँ। अपनी शांति तुम्हें प्रदान करता हूँ। वह संसार की शांति जैसी नहीं है।" प्रभु येसु ने शिष्यों को संसार की शांति नहीं बल्कि स्वर्गिक शांति के साथ संसार के कोने-कोने में उनकी शांति का संदेश सुनाने के लिए भेजा। आज हम प्रभु येसु के शिष्य हैं। हम प्रभु येसु के शांति वाहक हैं। हमारा कर्तव्य बनता है कि प्रभु येसु के वचनों को लोगों के पास पहुंचायें।

2. मिशन कार्य: प्रभु येसु स्वर्गारोहण से पहले अपने शिष्यों को एक महान मिशन सौंपते हैं। मत्ती 28:19-20 में वे कहते हैं, "जाओ और सब राष्ट्रों के लोगों को मेरा शिष्य बनाओ, उन्हें पिता, पुत्र और पवित्र आत्मा के नाम से बपतिस्मा दो, और जो कुछ मैंने तुम्हें सिखाया है, वह सब उन्हें सिखाओ।" यह मिशन कार्य केवल येसु के शिष्यों तक सीमित नहीं है, बल्कि प्रत्येक ख्रीस्तीय को दिया गया है—चाहे वह पुरोहित हो, सिस्टर हो, शिक्षक, डॉक्टर, किसान, या व्यापारी। हर क्षेत्र में हमें येसु के प्रेम और सत्य का प्रचार करना है। प्रेरित चरित 1:8 हमें बताता है कि पवित्र आत्मा हमें शक्ति देता है ताकि हम पृथ्वी के अंतिम छोर तक प्रभु के गवाह बन सकें। प्रभु ने हमें पवित्र आत्मा का वरदान देकर यह सुनिश्चित किया कि हम अनाथ न रहें, बल्कि उनके मिशन को आगे बढ़ाने में समर्थ बनें।

3. विश्वास का संदेश: येसु के स्वर्गारोहण के समय, स्वर्गदूतों ने शिष्यों से कहा, "हे गलीलियों, तुम क्यों आकाश की ओर टकटकी लगाए हुए हो? जैसे येसु स्वर्ग गए हैं, वैसे ही वे पुनः लौटेंगे" (प्रेरित चरित 1:11)। यह वचन हमें विश्वास और धैर्य का पाठ सिखाता है। यद्यपि प्रभु अब शारीरिक रूप से हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन वे आध्यात्मिक रूप से सदा हमारे साथ हैं और पिता ईश्वर के दाहिने विराजमान हैं। उनका पुनरागमन सुनिश्चित है, और इसी विश्वास के साथ हमें ईश्वर की इच्छा के अनुसार अपना जीवन जीना है। आइए, हम अपने जीवन में आशा को सुदृढ़ करें, प्रभु के संदेश का प्रचार करें, और उनके मिशन कार्य में सहभागी बनें। आमेन!